करवाचौथ: सात जन्मों के रिश्ते का प्रेम, व्रत और विश्वास
BY DRISHTI PRABHA | EDITED BY: MOHIT KOCHETA
भारतीय संस्कृति में हर पर्व का कोई न कोई भावनात्मक और आध्यात्मिक संदेश होता है। करवाचौथ भी ऐसा ही एक त्योहार है, जो केवल एक व्रत नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और विश्वास का उत्सव है। यह पर्व हर विवाहित स्त्री के लिए अपने जीवनसाथी के प्रति प्रेम और आस्था की गहराई का प्रतीक बन जाता है।
करवाचौथ का व्रत यह सिखाता है कि सच्चा रिश्ता सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि सात जन्मों तक निभाए जाने वाले वचनों का सम्मान है। इस दिन का हर अनुष्ठान, हर परंपरा, पति-पत्नी के बीच उस अमर बंधन को और मजबूत करती है, जिसे “विवाह” कहा जाता है।
🌸 करवाचौथ व्रत की कथा और महत्व
करवाचौथ का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में वीरवती नामक एक स्त्री ने अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत किया था। परंतु असावधानीवश उसने अधूरा व्रत तोड़ दिया, जिससे उसके पति को कष्ट हुआ। तब उसने सच्चे मन से पुनः व्रत रखा और अपने प्रेम से मृत्यु के देवता को भी पिघला दिया।
तभी से यह व्रत पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की स्थिरता के लिए रखा जाता है।
🌼 व्रत की शुरुआत — सोलह श्रृंगार और सच्चा निश्चय
करवाचौथ के दिन सूर्योदय से पहले सर्गी की परंपरा होती है, जिसमें सास अपनी बहू को मिठाइयाँ, फल, और उपवास के लिए आवश्यक सामग्री देती हैं। इसके बाद महिलाएँ पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं — यानी बिना जल पिए — अपने पति की लंबी आयु की कामना करते हुए।
सुहागनें इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं — चूड़ी, बिंदी, सिंदूर, काजल, कंगन, नथ, बिछिया आदि पहनकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं। माना जाता है कि यह श्रृंगार नारी के सौंदर्य के साथ उसके प्रेम और समर्पण का भी प्रतीक है।
🌕 पूजा और चंद्रदर्शन की परंपरा
शाम को महिलाएँ मिलकर करवाचौथ की कथा सुनती हैं, जिसमें देवी पार्वती और भगवान शिव की कथा का वर्णन होता है। इसके बाद करवा (मिट्टी का घड़ा), दीपक, अक्षत, और फल-फूल से पूजा की जाती है।
रात को जब चाँद निकलता है, तो महिलाएँ छलनी से चाँद को देखती हैं, फिर उसी छलनी से अपने पति का मुख दर्शन करती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को जल या मिठाई खिलाकर व्रत खोलता है। यह क्षण प्रेम, त्याग और एकता का सबसे सुंदर रूप होता है — जब आंखों में कृतज्ञता और मन में विश्वास का सागर उमड़ता है।
💖 व्रत का भावनात्मक अर्थ
यह उपवास केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि नारी की शक्ति और अटूट प्रेम का प्रतीक है। वह न केवल अपने पति की दीर्घायु की कामना करती है, बल्कि यह संकल्प भी लेती है कि जीवन के हर उतार-चढ़ाव में वह उसके साथ अडिग रहेगी।
करवाचौथ स्त्री के उस समर्पण का उत्सव है, जो बिना किसी अपेक्षा के, प्रेम में डूबकर निभाया जाता है।
🌺 रिश्तों में प्रेम और धैर्य की नई सीख
आज की तेज़ रफ़्तार दुनिया में यह पर्व हमें रुककर सोचने का मौका देता है — कि रिश्तों में समय, संवाद और सम्मान कितना आवश्यक है।
एक-दूसरे की भावनाओं को समझना, छोटी-छोटी बातों पर धैर्य रखना और हर परिस्थिति में साथ देना ही असली प्रेम है। करवाचौथ हमें यही सिखाता है — कि प्रेम केवल शब्द नहीं, बल्कि एक जीवनभर निभाया जाने वाला व्रत है।
🌹 सकारात्मक सोच और विश्वास की डोर
हर विवाह में समय-समय पर चुनौतियाँ आती हैं। लेकिन जब दोनों जीवनसाथी एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं, तो कोई भी मुश्किल रिश्ते को कमजोर नहीं कर सकती। करवाचौथ उस भरोसे को नमन करता है, जो दो आत्माओं को सात जन्मों के लिए जोड़ देता है।
💫 करवाचौथ — आधुनिक युग में भी प्रासंगिक
भले ही युग बदल गया हो, पर करवाचौथ का महत्व आज भी उतना ही गहरा है। अब यह केवल स्त्रियों का व्रत नहीं, बल्कि अनेक स्थानों पर पति भी अपनी पत्नी के लिए उपवास रखते हैं। यह परिवर्तन दिखाता है कि प्रेम और समर्पण दोनों दिशाओं में समान रूप से प्रवाहित हो सकते हैं।
निष्कर्ष
करवाचौथ प्रेम, विश्वास और एकनिष्ठता का प्रतीक पर्व है। यह हमें याद दिलाता है कि रिश्ते पूजा की तरह पवित्र होते हैं — उन्हें निभाने के लिए समर्पण, समझ और धैर्य की आवश्यकता होती है।
सात जन्मों तक एक-दूसरे के साथ रहने का यह संकल्प केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है — जो प्रेम को पूजा का रूप देती है।
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